हम भी जैसे एक पथ पर चल रहे हैं रुक रहे हैं
रिश्ते नाते लग रहा है जैसे बिखर बिखर गए हैं
एक दिनुया मन में है और एक है आँखों के आगे
शब्द जैसे दूसरी दुनिया में जाने को खुदी से लड़ रहे हैं
फिर नजाने क्यूँ खुद ही से द्वंध हम छेड़े खड़े हैं
ज़िन्दगी छोटी हुई और लोग जैसे बढ़ गए हैं
रिश्ते नाते लग रहा है जैसे बिखर बिखर गए हैं
ज़हन के हर एक कण में हम खुद ही को ढूंढते हैं
रूह है कुंठित और जैसे जिस्म मंथन कर रहे हैं
हसरतें बौनी हुई और स्वप्न जैसे रम गए हैं
रास्ते चलने लगे और हम कहीं पर जम गए हैं
ज़िन्दगी छोटी हुई और लोग जैसे बढ़ गए हैं
आँख के मोती कहीं पर गिर रहे हैं बस रहे हैं
साँस के एहसास मुझको डस रहे हैं हंस रहे हैं
ज़िन्दगी जीने में हर क्षण जी रहे हैं मर रहे हैं
घाव को भरने चले थे घाव गहरे हो गए हैं
मुस्कुराते चेहरे भी अब चोट जैसे कर रहे हैं
ज़िन्दगी छोटी हुई और लोग जैसे बढ़ गए हैं
भावना के दीप मन में जल रहे हैं बुझ रहे हैं